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RASHI SRIVASTAVA

Classics

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RASHI SRIVASTAVA

Classics

माँ की ममता

माँ की ममता

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माँ की ममता का मोल नहीं, उस जैसा कोई और नहीं,

माँ की ममता का मोल नहीं, उस जैसा कोई और नहीं।


बच्चे को घी चुपड़ी दे, पर खुद रूखी रोटी खाये,

अपना साया उस पर कर दे, गर तपन धूप की बढ़ जाए।


रात रात भर जगती है, क़ि लाल चैन से सो जाए,

दिन दिन भर मेहनत करती है, कि उसपे कोई ना आंच आये।


गलती पर समझाती है, फटकार भी लगा देती है,

दिल बेटे का गर दुखता है, तो छुप कर वो भी रोती है।


जैसे कुम्हार एक बर्तन को, ठोक पीट भी देता है,

भट्टी में तपा तपा उसको, एक मज़बूती देता है।


ऐसे ही माँ की डांट में, बच्चे की भलाई होती है,

उसका ही सिखाया ज्ञान तो, संकट में बल देता है।


माँ का तो प्यार निस्वार्थ है, उसमे कोई छल लोभ नहीं,

अनमोल ये ऐसा रिश्ता है, जिसका है कोई तोड़ नहीं।


जीने की ताकत मिलती है, रिश्तों को निभाना आता है,

उसके ही दिए संस्कारों से, जीवन ये सफल बन जाता है।


ऐसा ऋण माँ का प्यार है, कभी कोई चुका नहीं सकता है,

समझदार वो मानव है जो, माँ का महत्व समझता है।


माँ की ममता का मोल नहीं, उस जैसा कोई और नहीं,

माँ की ममता का मोल नहीं, उस जैसा कोई और नहीं।



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