मां की ज़िन्दगी
मां की ज़िन्दगी
क्या खता हुई उस मां की जिस मां ने
बच्चों की ख़ुशी की खातिर अपनी ख़ुशी बेच दी
जिस मां ने बच्चों के अरमां को संजोने के लिए
अपने अरमानों को हँसते हँसते दफना दिया
जिस मां ने बच्चों को अच्छी ज़िन्दगी देने के लिए
अपनी ज़िन्दगी के हर मोड़ पे ख़तरों का सामना किया
जिस मां ने रातों की नींद गंवाई बच्चों को सुलाने को खातिर
जो मां ने खुद तो भूखी रह गई बच्चों को खिलाने की खातिर
आज उसी मां से वही बच्चे सवाल करते हैं
के उस मां ने आखिर किया ही क्या है
क्या यही उस मां का इनाम हुआ
क्या यही उस मां का सर्टिफिकेट हुआ
