माँ की देन
माँ की देन
ना करो व्यक्त अपने अलफ़ाज़ ऐसे
आप हो पुष्प एक गुच्छ के
ना समझो इतने तुच्छ अपने आपको
रखो आस चूमने की आसमान को।
ना कोई बड़ा ना छोटा होता है
अपने आप में मस्त रहता है
ये तो है माँ की देन इंसान को
जो दिखाता है अपनी काबिलियत को।
ना किसी ने पाया है
अपनी माँ के कोख से
उसने उजाला है जीवन
अपने आप के अथाग प्रयास से।
मिल जाए यदि उसकी कृपा
जीवन सुखी रहे ओर राह सरल सदा
कर लो बुलंदी इतनी की
रहे रहेम सदा उसकी।
रखो अपने आप में इतना भरोसा
ना देखो थाली में किसने परोसा
ये तो एक जज्बा है कविता का
बहता है जल सदा सरिता का।