माई लाइफ
माई लाइफ
जिस उम्र में आकर सबकी जिंदगी सैट हो जाती हैं,
उस उम्र में आकर मेरी जिंदगी ने मुझे मेरे से मिलाया हैं
ख्वाब जो देखा था कभी बचपन में,
मेरी जिंदगी का सच बनकर सामने आया है।
रोऊँ या हसूँ.... मेरी कुछ न समझ में आया है।
फिर थाम लिया उसी का हाथ जिसने मुझे मेरी जिंदगी से मिलाया हैं।
जिंदगी की इस जंग में सारथी बनकर उसने फिर से अर्जुन मुझे बनाया हैं।
खड़ा हू अपनो के समक्ष इस मोह के रंग में,
विष्णु बनकर फिर उसने फिर से गीता का पाठ मुझे पढ़ाया हैं।
विष्णु रूप को देखकर मैने अपने अंदर का मोह हटाया हैं।
बनकर पार्थ थाम कर सारथी का हाथ आगे क़दम मैने बढ़ाया।