गुरु .....
गुरु .....
जिस प्रकार जिंदगी में माता पिता दोनों का होना हमारे जीवन में जरूरी हैं,
उसी प्रकार जिंदगी में गुरू का होना भी अति आवश्यक हैं।
विद्यालय में पढ़ाने वाला केवल एक शिक्षक होता है,
परन्तु वही शिक्षक गुरू का रूप तब लेता है
जब वह अपने जीवन में गुरू के अस्तित्व को बढ़ाकर
उसकी चरण सीमा को पार करता हैं।
एक गुरू अपने विद्यार्थी को किताबी शिक्षा देने के साथ साथ
जिंदगी में होने वाले सभी परिवर्तनों की शिक्षा देता हैं।
एक गुरू अपने विद्यार्थी का गुरू होने के साथ साथ
उसका मित्र की तरह उसका साथ निभाता हैं।
गुरू अपने विद्यार्थी को उसके जीवन में होने वाले सभी परिवर्तनों के बारे में समझाता है....
बल्कि जीवन के सभी परिवर्तनों को किस प्रकार से अपने जीवन में
सकारात्मक रूप से अपने जीवन में उतारा जाए तथा
उनका सामना कर जीवन में सकारात्मक रूप से आगे बढ़ा जाए ।
इसलिए कहा जाता है कि बनना है तो गुरू बन, शिक्षक तो हर कोई बन जाता हैं।
सिखाना है तो जिंदगी का पाठ सिखा,
किताबी कीड़ा तो हर कोई बना देता हैं।.......