मैं
मैं
शीतल वायु की तरह बहते होंगे तुम कहीं,
विचलित अशांत तूफान बनके चला हूं मैं,
दुश्मन से छुपकर बैठें होंगे तुम कहीं,
प्रतिद्वंद्वीयो को नेस्तनाबूद करके आगे बढ़ा हूं मैं।
तेज हवाओं के सामने घुटने टेकते होगे तुम कहीं,
चट्टान बनके तूफानों के सामने आज भी खड़ा हूं मै।
हार से डरकर आत्मसमर्पण करतें होगा तुम कहीं,
जीत बनके हार से हर पल लड़ा हूं मैं।
भयग्रस्त होकर अवसादों में घिरे होंगे तुम कहीं,
निडर बनके डर से आंख मिलाकर खड़ा हूं मैं।
अंधेरों में रुक गये होंगें तुम कहीं,
जुगनू बनके तमस में भी चला हूं मैं।
बुझती राख बन गए होंगे तुम कहीं,
तपता सूरज बनकर वीरानों मे जला हूं मैं।
तिनके की तरह डूब गये होंगे तुम कहीं,
समुंदर में, कश्तियों की तरह आगे बढ़ा हूं मैं।
क्षितिज से पहले गिर गये होंगे तुम कहीं,
अनन्त आकाश में बाज बनके उड़ा हूं मैं।
परिधियों में घिरे रहते होंगे तुम कहीं,
दायरों को तोड़ कर फ़ौलाद बना हूं मैं।
ज़ुल्म के सन्नाटो में चुप रहते होंगे तुम कहीं,
जुल्मों को चीरती पुकार बनके चला हूं मैं।
लिखें होंगें नाम रेत पर तुम ने कहीं,
पत्थरों पर इबादतें उकेरता चला हूं मैं।