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आनंद कुमार

Abstract Romance

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आनंद कुमार

Abstract Romance

इस सफर में

इस सफर में

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सोचकर रुक गया मैं इस सफर में,

की न जाने कितने खो गए इस भंवर में।


झूठी प्रेम लीला ना जाने कितनों को खा गई,

कितने सच्चे प्रेमियों को रुला गई।


एक दिल था मेरे पास,

वो उसको पत्थर बना गई।


जब-जब चला सोनो को,

अनायास ही उसकी याद आ गई।


मैं भूल गया था उसको, 

मगर कम्बख़त वो सपनों में आ गई।


मैं सोचना भी नहीं चाहता उसको,

पता नहीं कहां से वो मेरे दिल में आ गई।


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