ख्वाब...
ख्वाब...
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बचपन में एक ख्वाब सजाया ,
कान्हा बनने का स्वप्न सजाया।
जब जब करता आंख मिचौली,
तब तब नटखट मैं कहलाया।
जैसे जैसे बड़ा हुआ,
गोपियों के संग रास रचाया।
जिसने देखा मुझे जिस रूप में,
साथ मैंने उसका निभाया।
ना किया छल किसी के संग,
फिर भी छलिया में कहलाया।
रोम रोम में बसी है राधा,
फिर भी साथ बासुरी ने निभाया।
कान्हा बनने का एक प्यारा सा ख्वाब सजाया।