उड़ान कविता
उड़ान कविता
आज भरी है उड़ान
जगा कर मन में महानता का ईमान
बनाने अपनी सबसे अलग पहचान
आज भरी है हमने उड़ान
ऊंचाइयों का डर नहीं है
कायर तो आज भी वही है
डर जिसे है गिरने का
शौक जिसे है इधर-उधर फिरने का
माथे पर लगाएं निकम्मे पन का निशान है।
प्रेरित हुए जो हमें देखकर उन पर किया है हमने एहसान
आज भरी है हमने उड़ान ।
काट दो पंख हम हौसलों से उड़ते हैं
लानत है उन पर जो उड़ने से पहले ही डर के गिर पड़ते हैं
हम वह पंछी है जिसके पंख भले ही घायल हो
किंतु मंज़िल तक पहुंचने की ज़िद उसमें अभी भी कायम हो
मुश्किलों का सामना डटकर करेंगे
नहीं डरेंगे गिरने से चाहे जिंदगी आजमा ले हमें ले कर कितने भी इम्तेहान
आज भरी है हमने उड़ान !