माहवारी भाग-1
माहवारी भाग-1
स्त्री हो तुम डरती हो,
जब कभी माहवारी से लड़ती हो।
सोच ऐसी बनाई सबने,
माहवारी में हुई पराई सबमें।
पाप है क्या ये ? जो न किया तुमने,
कुदरत से ही तो पाया तुमने।
दिया जन्म अपनों को ही,
खुद का तिरस्कार कराने को।
स्त्री हो तुम डरती हो,
जब कभी माहवारी से लड़ती हो।
