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Abhishek Singh

Tragedy

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Abhishek Singh

Tragedy

माहवारी भाग-1

माहवारी भाग-1

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स्त्री हो तुम डरती हो,

जब कभी माहवारी से लड़ती हो।

सोच ऐसी बनाई सबने,

माहवारी में हुई पराई सबमें।


पाप है क्या ये ? जो न किया तुमने,

कुदरत से ही तो पाया तुमने।

दिया जन्म अपनों को ही,

खुद का तिरस्कार कराने को।


स्त्री हो तुम डरती हो,

जब कभी माहवारी से लड़ती हो।


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