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Avadhesh Kumar

Drama

3  

Avadhesh Kumar

Drama

माघ आते सँवरने लगी है

माघ आते सँवरने लगी है

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कली माघ आते सँवरने लगी है

कशिश आँख की अब निखरने लगी है।


कली अधखिली कुछ सयानी हुई है

लिपट कर हवा से मचलने लगी है।


अधर सुर्ख से वह लुभाती अली को

कली फूल बनकर महकने लगी है।


हवा की छुअन से कली बेकली है

विवश हो निशा में सिसकने लगी है।


चुभन टीस दिल की रुलाने लगी अब

सुमन की जवानी पिघलने लगी है।


मदन ने मिलाया कली को अली से

कली प्रीत पाकर विहँसने लगी है।


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