लॉक डॉउन
लॉक डॉउन
कोरोना महामारी में,
माना लोक डाउन जरूर
हुए हैं हम,
घरों में आज कल अपने,
पर ये जरूरी था,
हमारे मरते रिश्तों के लिए,
जो पास होते हुए भी,
दूर हो रहे थे अपनों से हम हरदम,
हमारी संवेदनाएं,
अपनों के लिए ही मर रही थी,
और स्वार्थों के शोर के नीचे,
दब कर गूंगी बहरी हो रही थी,
पैसा कमाने की होड़,
एक दूसरे से आगे बढ़ने कि
लालसा,
ईर्ष्या, जलन, चिढ़, अवसाद,
ने बढ़ाया दिल में फासला,
हम अपनों से ही दूर हो गए,
घर के होते हुए भी,
घर से दूर हो गए,
इन रिश्तों में फिर से जान फूकने,
उन्हें फिर से जिलाने का,
रिश्तों की गर्माहट को,
विश्वास से बढ़ाने,
एक दूसरे को समझने,
"नज़रअंदाज़" जैसे शब्दों को,
दिल से निकालने,
मिल बैठ कर बातें बांटने,
दुख: तकलीफों में,
भागीदार बनने,
एक दूसरे के लिए,
पहल करने का एक मौका
चाहिए था सभी को,
तब लॉक डॉउन,
एक बेहतरीन माध्यम बन के,
परिवारों को जोड़ने के लिए आया,
इसी बहाने से ही सही,
मुद्दतों बाद सभी रिश्ते इकट्ठे तो हुए।