लोकडाउन में सुधार
लोकडाउन में सुधार


इस लोकडाउन मे जल रहा हूं
बिना पानी के आंखे मल रहा हूं
जब से लगा है ये लोकडाउन,
तब से में खुद से ही लड़ रहा हूं
ना खुलता है अब कोई बाज़ार,
हर कोई हो गया है अब लाचार,
इस लोकडाउन मे दहल रहा हूं
हर चीज़ के लिये तरस रहा हूं
सब सपने अब धूमिल हो गये है,
आज हर फूल ही शूल बन गये है,
इस लोकडाउन में ढल रहा हूं
बिना आईने की शक़्ल बन रहा हूं
फिऱ भी में जिंदा हूं,यही काफ़ी है
इस लोकडाउन में सबक ले रहा हूँ
इस दर्द से दवा का काम ले रहा हूं
इस लोकडाउन संतोषी हो रहा हूं
अब रहूंगा सदा ही साफ-सुथरा,
काम न करूँगा अब कोई बुरा,
इस लोकडाउन में सुधर रहा हूं
जरूरतों को कम कर रहा हूं
अपनी ख़ुदी से खुद बदल रहा हूं
इस लॉकडाउन में निखर रहा हूं।