"लम्हों की किताब के पन्ने "
"लम्हों की किताब के पन्ने "
बेचैनियाँ रातों की मिटा, दिन आ गया
तुम्हारी मुस्कुराहटों पर. फिर दिल आ गया
जो दमकती हैं दतियाँ अंधेरों में
फिर से खुशियों का, उजाला छा गया।
लड़ता हूँ खुद से तुमसे हार जाने को
हार कर खुद को, तुमको जीत जाने को
क्या हुआ जो ग़मों ने अपना बना लिया
ज़िंदगी तो बस है, नए गीत गाने को।
फिर से दुआओं में किसी ने माँगा है मुझे
मुझसे ज़्यादा किसी ने चाहा है मुझे
मैं कैसे टूट जाऊं ये बता ज़िंदगी
कैसी भी हो राह ,मैं हूँ
ये तो ज़िंदगी से वादा है मुझे।
किताबों के पन्ने हवा में फड़फड़ाने लगे
वो खुशबु सा मुझे फिर से याद आने लगे
मैं पढ़ता रहा जिसे ताउम्र शिद्दत से
वो मुझसे अब दूरियां बढ़ाने लगे।

