" ललकार "
" ललकार "
दुन्दुभी
बजने लगा ,
विजय -पर्व का
पताका
फहरने लगा ,
नगाड़ा बजने लगा ,शत्रुओं
में डर
सदा बसने लगा !
हम न छोड़ेंगे कभी
उन शत्रुओं को ,
पदतल कुचलना है
हमें उन उदंडियों को !!
है... हमारी कामना
हो विजय
सब की यहाँ पर !
शौर्य की गाथा
लिखें हम भाल पर !!
हे प्रभु !
हमें तुम शक्ति देना
हम बुराइयों
से सदा लड़ते रहें कल्याण सबका
हो जगत में
और हम सदा
साधक बनें !!
