लकीर
लकीर
मनुष्य की मनुष्यता पर, प्रश्न चिन्ह लग रहा।
लकीर के एहसास, ये बता रही है धरा।।
गुदगुदी सी कर गई थी, मेरे तन में वो पहली लकीर।
अनभिज्ञ मानस पुत्र को, न मर्म था क्या है लकीर।।
फिर लकीर पर लकीरें, बस लकीर ही लकीर।
वक्त ने देखी हैं मेरे, चेहरे की सारी लकीर।।
काल्पनिक कभी वास्तविक,लंबवत कहीं दंडवत।
आडी-तिरछी, टेढी-मेढ़ी,भाग्य,कभी दुर्भाग्यवश।।
दिशा,देश, धर्म, वंश,जाति और प्रजाति की।
हैं लकीरें मेरे तन पर, अन्य भाँति-भाँति की।
वर्ण,वर्ग, रंग, भाषा, लिंगभेद, अर्थ की।
धुंधली हुई परमार्थ की, चमके लकीर स्वार्थ की।
ऊंच, नीच, भेदभाव, सांप्रादायिकता की लकीर।
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घृणा द्वेष, अहंकार, रुग्ण मानसिकता की लकीर।।
चीर डाला है हृदय, मैं बांट दी लकीरों से।
ऐसा खरोंचा आदमी ने, मैं काट दी लकीरों से। ।
अनगिनत खण्डों में, मैं बांट दी लकीर से
रोक दो ये सिलसिला, मैं पाटदी लकीर से।
काल्पनिक या वास्तविक हो,बांट देती है लकीर।
मनुष्य को मनुष्य से ही, छांट देती है लकीर।।
लकीर ही लकीर बस, लकीर ही लकीर हैं।
वास्तव में आदमी, लकीर का फकीर है।
जितनी भी मेरे सामने हैं, कृत्रिम या प्राकृतिक लकीर।
सबसे भयानक है बस, और वो है नफ़रत की लकीर।।
ये धरा 'उल्लास' से कहती है नयनों में अश्रु भर।
सूक्ष्म कर दो, सब लकीरें, प्रेम की लंबी लकीर खींच कर।