लकड़ी के चूल्हे से गैस तक का सफर
लकड़ी के चूल्हे से गैस तक का सफर
आज फिर मुझे पुराना समय याद आ गया।
जब मैं बनके दुल्हन इस घर में आई।
सब लोगों का बहुत प्यार में पाई।
पहली रसोई का दिन जब आया।
देख रसोई में चूल्हा मेरा दिल घबराया।
क्योंकि चूल्हा को कभी मैंने जलाया ना था।
बहुत कठिन मुझे वह नजर आया।
2 दिन में ही उससे दोस्ती कर ली।फिर चूल्हे को कभी ना कोसा।
हमने हमेशा रोटी उस पर ही बनाई थी।
एक बार की बात बताएं यारों चुपचाप चुपचाप ही बताते हैं।
रोटी बनाते हुए आग पकड़ ली हमारी सूती साड़ी ने नए थे।
एकदम कुछ समझ नहीं आया।
पूरी साड़ी उतार कर के फेंक दिया।
फिर अपने कमरे में गए उस जली साड़ी का पूरा जला टुकड़ा चूल्हे में ही झोंक दिया।
ताकि साड़ी जलने का कोई निशान ना रहे
किसी को भी हमने नहीं बताया।
कि साड़ी हमारी जल गई है लगा हम नए-नए हैं कहीं सब हम पर बरस ना पड़े।
सब की डांट की बरसात हम पर ही ना पड़ जाए।
बात का बतंगड़ ना बन जाए।
थोड़े से समय के लिए साहब हॉस्पिटल हॉस्टल से आते हैं।
कहीं वह समय भी लड़ने झगड़ने में ना बीत जाए।
उसके बाद में हमने मदद लेकर काम करना किया चालू
कभी वापस यह समस्या ना आई सामने।
एक दिन बात करते-करते जब हमने अब
46 साल बाद अपने पति को यह बात बताई।
वे बोले तुमने उस समय क्यों नहीं कही।
मैंने कहा जैसे चूल्हे में साड़ी जल गई।
नई नयी थी कितनी फजीति हो जाती।
कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता।
कोई ससुराल वालों को ही बदनाम कर जाता।
क्योंकि उनकी कोई गलती ही नहीं थी।
इसीलिए चुप्पी में ही सार समझा। मुझे शारीरिक हानि तो हुई नहीं थी।
आज जब बात आई है तो बता रही हूं आपको।
ऐसा भी एक बार मेरे साथ हुआ था।
थोड़े दिन बाद 8 महीने बाद घर में गैस आया
गैस का कनेक्शन आते ही मेरी सासू मां ने सबसे पहले जाकर
एक हथौड़े से उस चूल्हे को हटा दिया।
बोले अब यह चूल्हा नहीं चाहिए।
बहुत तकलीफ झेली तुमने जो चूल्हे में रोटियां बना कर।
अब तो गैस पर ही रोटी बनेगी।
इस तरह हमारा चूल्हे से हुआ छुटकारा
आज आपके विषय से हमको भूला हुआ चूल्हा याद आया।
लहरिया की साड़ी काजल ला पल्लायाद आया।
साथ में सासू मां का प्यार विश्वास याद आया।
चूल्हे से गैस तक का सफर याद आया।