लिखने की बात थी !
लिखने की बात थी !
लिखने की बात थी,
वो दर आए कहानी सुना गए !
मैं ढूँढती रही काग़ज़- कलम,
वो गहराई में सरलता ला गए !
मैं गढ़ती रही नक़्शे- नाबूत
वो बोले ऐसे के दिल पे छा गए !
समंदर रचना था मुझे
वो लहरों को संगीत बना गए !
मैं पढ़ती रही किताबे,
वो चेहरा पढ़ के आरज़ी बता गए !
ढूँढती हूँ कदम जिन पर,
चलकर वो कामयाबी पा गए !
अब भी ना गुज़रे सच के
रास्ते फिर ना पूछना कहाँ गए !
मंज़िल दर मंज़िल वो
अपना क़ाफ़िला बना गए !
मुश्किल है ‘अक्स’ का ठहरना,
खून अपनी पहचान बता गए !
अब क्या बहना मुश्किल में,
जो सीधे होकर सादा गा गए !
