STORYMIRROR

Parul Manchanda

Romance

4  

Parul Manchanda

Romance

भूल गए शायद !

भूल गए शायद !

1 min
19

दरख़्त लगा दी तुमने 

अपनी मिट्टी के साथ।

पानी देना, भूल गए शायद !


इंतज़ार करवाने की आदत है तुमको

अपनी मशरूफ़ियत में !

तुम बताना, भूल गए शायद !


निवाला ना उतरा ना था गले से तुम्हारे

भूख से मेरा भी अक्स बेज़ार है!

तुम पूछना, भूल गए शायद!


नमी आँखों की कौर में है मेरे 

की कोई पुकारे कब तक 

तुम आवाज़ देना, भूल गए शायद!


अंजान राहों पर चलने का शौक़ ना था 

तुम रोशन अज़ाब करके 

दीप जलाना, भूल गए शायद!


दवा भी काम की थी दुआ भी

तुम जाम भर के प्याले में

मुझे पिलाना, भूल गए शायद


कोई तो क़ैद होगी रुसवाई की 

तुम इल्ज़ाम मुझे देकर 

आज़ाद होना, भूल गए शायद


छेड़ कर साज़ तुमने तराने गा दिये

मेरे ज़ख़्मो का इलाज

तुम, भूल गए शायद !


तुम भूल गए हमे याद रह गया 

राह देखना तुम्हारी, 

तुम भूल गए हमे याद रह गया 

राह देखना तुम्हारी, मुड के

देखना, तुम भूल गए शायद !

तुम भूल गए शायद !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance