आख़िरी चाबी
आख़िरी चाबी
उम्मीद कही दफन रही होगी दिल में
सादगी ने लूट लिया हमको ऐसे।
मुझे ताले की चाबी बताकर
मेरी आख़िरी चाबी बन गया जैसे।
लोग नशे नहीं छोड़ते किसी के लिये
उसने मनपसंद कुरबान दी जैसे तैसे
आज भी मासूमियत है चेहरे पर
रोज़ा रखता नहीं इस तारीख़ में वैसे।
सलामी दूँ, स्नेह रखूँ या प्रीत करूँ ?
कोई बताए राह पर अब चलूं कैसे?
हमको वक़्त ठग गया इस बार
वरना हमें कहाँ बचते थे चार पैसे
रातें फिर गुज़र जाती है करवटों में
दिन कोई हलक में अटक जाता है ऐसे
अपने आप में रहना मुश्किल है अक्स
दूर कोई दिल से प्रीत गाता हो जैसे।
गलती हो तो सज़ा देना मेरे मौला
हक़दार नहीं अब हम माफ़ी के वैसे
जो हाथ में ही नहीं अपने जज़्बात
उन पर कोई क़ाबू पाए तो पाए कैसे?
दीदार तक ही सिमटा रहे दिल अच्छा है
ज़िंदगी क्यों ख़राब करे उनकी वैसे
अपने हिस्से का इश्क़-विछोड़ा जी चुके
नज़रअन्दाज़ी अता करो हमे जैसे तैसे
नतीजा पूछते हो कहानी का हमारी
फ़साना तुमसे लिखना शुरू किया था वैसे
ये कैसा इम्तिहान ले लिया इस दफ़ा
जान निकलते निकलते रह गई हो जैसे
आँसू भी नहीं निकलते सुख चुके है
बुरे फंसे धर्मसंकट में इस बार ऐसे
क्यूं आधी जान बची
ले जाओ इस बार जैसे तैसे।
ले जाओ इस बार जैसे तैसे।
