लिखना चाहती हूँ
लिखना चाहती हूँ
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बहुत से लोग लिखते होंगे पर
मैं पूरा इतिहास गडना चहती हु।
पतंगे तो बहुत से छोड़ रखे हैं तुमने
पर मैं उन सबसे ऊंचा उड़ना चाहती हूं।
अब सब कुछ भूल के बस तेरी
बस तेरी ही ओर बढ़ाना चाहती हूं।
बस तेरे ही रंग रंगना चाहती हूं।
बस तुझमें ही रमना चाहती हूं।
माना ऊंचाई से गिरने का डर है मन में
पर अब बस बेधड़क लिखना चाहती हूँ।
डर नहीं सियाही खत्म होने का
अक्सर कलम नए दे जाते हैं लोग।
अब बस जूनून भरना चाहती हूँ।
अपनी सारी बातें बिना कहे ही कहना चाहती हूं।
अब बस मैं लिखना और सिर्फ लिखना चाहती हूं।
अब बस मैं लिखना और सिर्फ लिखना चाहती हूं।