बिना पड़े खत
बिना पड़े खत
कितने खत होंगे और कोई पढ़ भी न पाया होगा
कितने ख्याल होंगे अनकहे, कभी कोई जान भी न पाया होगा।
आँसू छुपे थे, दर्द या छुपी थी किसी की मुस्कराहट
छुपा ही रहा होगा एहसास कभी कोई देख भी न पाया होगा।
टूटा हुआ प्यार था या था किसी का रूहानी डर
मरा पड़ा रहा होगा ख्याल ज़िंदा रह भी न पाया होगा।
अनकहे लफ्ज़, अनकही यादें , किसी की वफाई या बेवफाई
घुटे एहसासों के साथ जीना तो दूर, शख्स मर भी न पाया होगा।
कुछ एहसास छुपे पड़े होंगे ज़माने की भीड़ से दूर
कुछ यादें भी होंगी अल्हड़पन की, जो कोई जान भी न पाया होगा।
कितने खत मरे पड़े हैं दुनिया के कब्रिस्तानों में
जहाँ जिस्म पड़े है दफन, रूह को कभी आराम भी न आया होगा।
अपने ज़ेहन ने भी न जाने कितने खत लिखे और फाड् दिए कितने
हर मुस्कुराट के पीछे छुपा दर्द , कभी कोई जान भी न पाया होगा।
