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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

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Ratna Kaul Bhardwaj

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बिना पड़े खत

बिना पड़े खत

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कितने खत होंगे और कोई पढ़ भी न पाया होगा 

कितने ख्याल होंगे अनकहे, कभी कोई जान भी न पाया होगा।


आँसू छुपे थे, दर्द या छुपी थी किसी की मुस्कराहट  

छुपा ही रहा होगा एहसास कभी कोई देख भी न पाया होगा।  


टूटा हुआ प्यार था या था किसी का रूहानी डर

मरा पड़ा रहा होगा ख्याल ज़िंदा रह भी न पाया होगा।


अनकहे लफ्ज़, अनकही यादें , किसी की वफाई या बेवफाई 

घुटे एहसासों के साथ जीना तो दूर, शख्स मर भी न पाया होगा। 


कुछ एहसास छुपे पड़े होंगे ज़माने की भीड़ से दूर 

कुछ यादें भी होंगी अल्हड़पन की, जो कोई जान भी न पाया होगा।


कितने खत मरे पड़े हैं दुनिया के कब्रिस्तानों में 

जहाँ जिस्म पड़े है दफन, रूह को कभी आराम भी न आया होगा।


अपने ज़ेहन ने भी न जाने कितने खत लिखे और फाड् दिए कितने 

हर मुस्कुराट के पीछे छुपा दर्द , कभी कोई जान भी न पाया होगा।  


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