लगाये गले कोई बैचैन दिल को
लगाये गले कोई बैचैन दिल को


कहीं से कहीं तक नहीं चैन दिल को,
मुहब्बत का अब न रहा रैन दिल को।
बची बस ख्वाहिश जीने के खातिर,
लगाये गले कोई बैचैन दिल को।।
मिटा हैं जमाना मुहब्बत मिटा न,
ये वो चीज है जो बांटें बटा न,
झुक गये झुकाने वाले यहाँ पर,
मगर दिल दिवाना कभी झुका न,
कहे कैसे खोया हुआ प्यार अपना,
होशो हवास अब हैं न दिल को।
कहीं से कहीं तक नहीं चैन दिल को,
मुहब्बत का अब न रहा रैन दिल को।।
हो दूर तुम तो हमें सब पता हैं,
क्यों आते नहीं पास क्या हुई खता हैं,
हमें क्या हम तो ठहरे दिवाने,
मुबारक तुम्हें अब रब की रजा हैं,
कहकर चले तुम हमें अलविदा,
भला हो कैसे गम सहन दिल को।
कहीं से कहीं तक नहीं चैन दिल को,
मुहब्बत का अब न रहा रैन दिल को।।