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D.N. Jha

Abstract Inspirational

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D.N. Jha

Abstract Inspirational

लेखनी

लेखनी

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सभी रसों में डुबकी लगाती।

लेखनी हर भावों को संजोती।

रसों की चासनी में डूबकर भी।

लेखनी हमारी लेखनी ही रहती।


कितनी साधारण सी है दिखती।

सहज भाव से सभी को लिखती।

हास्य, वीर, करुणा, श्रृंगार ‌रसों में।

नहीं कभी वो विचलित है होती।


लेखनी का तो इतिहास है पुराना‌।

लिखते-लिखते गुजर गया जमाना।

स्याह में डूबो -डुबोकर थे लिखते।

दादा के परदादा व नाना के परनाना।


पंखों से लिखने का अब गया जमाना।

लकड़ी से लिखने का प्रचलन है पुराना।

मनुष्य नित -निरंतर आविष्कार हैं करते।

अब सबने तो बाॅल पेन को ही है पहचाना।



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