लाल बत्ती पे
लाल बत्ती पे
लालबत्ती चौराहे पर
कोई बालक फूलों का
गुलदस्ता लिए
खरीदने की गुहार करता
कोई नवयुवक कार के कांच को
जल्दी में साफ करता
निगाहों के याचना
कोई बूढा भीख मांगता
ऐसे दृश्य रोज दिखते हैं
चमकदार सभ्यता संस्कृति
और अभिमान में झकड़ा
आज का सभ्य समाज
देखता है इन्हें
हिकारत भरी नजरों से
कभी महसूस करो
लाल बत्ती चौराहे पर
गाड़ियों के बीच भागते हुए
इन मजबूर इंसानों के दर्द को
ये लोग भय और भूख को
ललकारते हुए
जिंदगी की
लड़ाई लड़ते रहते अनवरत
गुजरती रहती है
इनके पास से सभ्य समाज के
पत्थर दिल लोगों का कारवां
महंगी गाड़ियों में
मृत संवेदनाओं के साथ !