क्यूँ
क्यूँ
वो कौन सी कल्पना है
जो तुम्हें दी है खुदा ने
और क्यूँ हमें देना भूल गया
तुम्हारी सोच मेरे सीने
पर ही क्यूँ रुक जाती है
क्यूँ मेरी कमर से नीचे
मेरे पाँवों तक नहीं जाती है
वो पाँव जो दौड़ना चाहते हैं
वो पंख मेरे कांधों पर
जो उड़ना चाहते हैं
मंजिलो को अपनी छूना चाहते हैं
क्यूँ हमारी सीढ़ियां
तुम्हारी नाकामियां बताती हैं
हमारे ख्वाबों की खुशियां
तुम्हारी हकीक़त राख कर जाती हैं
वो कौन सी कल्पना है
जो तुम्हें दी है खुदा ने
और क्यूँ हमें देना भूल गया
कहाँ लिखा है ये कि
तुम्हारा अनुसरण ही हमारी पहचान है
किसने कहा है ये कि
तुम्हारे कांधों पर जो टिके
बस वही हमारा मकान है
क्यूँ तुम्हारी सोच
हमारे इरादों तक नहीं जा पाती
देखते हो जिस्म हमारा
क्यूँ आँखें तुम्हारी
हमारा मन नहीं देख पातीं
जब नोचते हो बदन हमारा
क्या तुम्हारी रूह नहीं कांपती
आत्मा नहीं धित्कारती
या इंसानियत नहीं जागती
किसी पिता की कहानी की परी हूँ मैं
किसी माँ के बाग की कली हूँ मैं
तुमने दिया है वो डर उन्हें
जो कहता है दिन रात
लड़की से बेहतर तुम्हें औलाद न होती
वो कौन सी कल्पना है
जो तुम्हें दी है खुदा ने
और क्यूँ हमें देना भूल गया