संगतराश
संगतराश
निखर जाता है
सौंदर्य
बेडोल और बेजान पत्थर का भी
किसी
संगतराश के हाथों
उसकी छेनी और हथौड़े से
और
बन जाती है अलौकिक
देव प्रतिमा
जो होती है
सबकी आराध्य ,
किन्तु
कोई नहीं जानता
उस संगतराश की पीड़ा को
जो झेला है उसकी
लहू लुहान अंगुलियों ने।
स्वर्ण मंडित हो गयी
वो ही प्रतिमाएं
पर
वो अब भी फटेहाल
फाके करने को विवश
देव प्रतिमा बनाकर भी।
