STORYMIRROR

Yogesh Kanava

Abstract Tragedy

4  

Yogesh Kanava

Abstract Tragedy

संगतराश

संगतराश

1 min
308

निखर जाता है 

सौंदर्य 

बेडोल और बेजान पत्थर का भी 

किसी 

संगतराश के हाथों 

उसकी छेनी और हथौड़े से

और 

बन जाती है अलौकिक 

देव प्रतिमा 

जो होती है 

सबकी आराध्य ,

किन्तु 

कोई नहीं जानता 

उस संगतराश की पीड़ा को

जो झेला है उसकी 

लहू लुहान  अंगुलियों ने। 

स्वर्ण मंडित हो गयी 

वो ही प्रतिमाएं 

पर 

वो अब भी फटेहाल 

फाके करने को विवश 

देव प्रतिमा बनाकर भी 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract