क्यों ?
क्यों ?
सूरज है आज भी वही
आदर्शों की चमक है फिकी क्यों?
चांद की शीतलता भी वही है
पर मानवता है सूखी क्यों?
आज भी गिला होता मां का आंचल
पर संतानें बदफैली क्यों?
आज भी नदिया मीलों दूर
सागर से मिलने आतुर
इंसानों के रिश्तों में
यह संयम की दूरी क्यों?
शानो शौकत भरी पड़ी है
पर सुकून की है तंगी क्यों?
