तलवार _ स्वच्छंद काव्य
तलवार _ स्वच्छंद काव्य
आसान नहीं था यह सफर स्त्री से शक्ति बनने का
पथरैली थीं डगर समाज की कड़ी नजर
संघर्ष के तेरे सीमा नहीं ।सहने का तेरे अंत नहीं
कब तक दबी रहेगी ज्वाला ताकत का भव्य उजाला
चमक उठा है रोशनी से तेरी आज जग सारा
नारी तू है शालीनता के म्यान में सजी झांसी की तलवार
अब कर हर अन्याय पर पलट कर वार।
