क्यों दबाते हो
क्यों दबाते हो
जब जब मैं उठने की कोशिश करती हूं
तुम मुझे क्यों दबा देते हो!
मेरे आगे बढ़ने की कोशिशों पर तुम
क्यों रोक लगा देते हो !
नए उमंग संग उड़ने चलूं
तो उत्साह के पंख काट देते हो,
क्यों मेरे कोशिशों के आगे तुम
बीच खड़े हो जाते हो!
दबी हुई सपनों को साकार करने पर
तुम उन्हें तार-तार कर देते हो,
क्यों मेरे आगे बढ़ने के पथ पर,
तुम कांटा सा मुझको चुभते हो!
लेकिन याद रखो एक दिन ऐसा आएगा
मै इस दबाव को तोड़ डालूंगी,
उमंग के पंखों को खोल डालूंगी
मेरे पथ के उस कांटा को पार कर,
प्रगति के पथ पर बढ चलूंगी।