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Manoj Kumar

Romance

4  

Manoj Kumar

Romance

क्या तुम्हें पता हैं?

क्या तुम्हें पता हैं?

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क्या तुम्हें पता हैं ?

मेरी बेचैनी..

यादें तो दिल ही करता!

अब तो बस रहता हैं आंखो में पानी

उठकर कहीं और बैठ जाता हूं

रब से दुआ करता हूं।

बस मिला दें,

एक बार उस मोहब्बत से

ठंडक मिले दिल में

दूर ना रहूं तुमसे ,

तुम्हें क्या पता

इतना बेताबी हैं इस दिल में,

बस तुम्हें ही पाने को

समय कटता नहीं हैं।

तुमसे दूर होकर

रातें तन्हाई में मुझे गीत सुनाती हैं,

डर लगता है।

तुम रहो तो कुछ ओर ही बात है।

तुमसे दूर रहकर बस काली ही रात है

मेरी आंखो में बस तुम्हारी ही नज़र

परछाई बनकर आती है।

तुम्हें पता नहीं कैसी होती हैं शाम

बिताते हैं दिन

थोड़ा ओझल हो जाता हूं मैं,

तुम्हारे ही ख़यालो में

छूट गया सारा जग

तुम्हें ही पाने को,

तुम्हें पता ही नहीं चलता

कैसा मैं तड़पता

दिल मेरा अकेला,

दूरियों में खेला..

रोशनी ने मोड़ी राहें,

अंधेरों में जिया..

क्या कर सकता हूं,

तुम्हारे बिन रहकर

जीने से अच्छा तो..

मर जाना तो सही,

इतनी चोट दिल पर ना लगे,

अगर तुम नहीं तो,

तुम्हारी तस्वीर ही सही..

सीने से तो लगाऊं,

कम हो मोहब्बत के प्यास,

जब तुम रहे जिंदगी भर मेरे साथ।।



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