क्या सज़ा दूं इश्क़ करने की
क्या सज़ा दूं इश्क़ करने की
क्या सज़ा दू मैं तुम्हें इस दिल को तोड़ने की,
हँसते हँसते तुमनें मुझे रोना भी सीखा दिया है,
वो जो गम की दुनिया से परे थी
उसे गम में डूबना सीखा दिया,
वो जिसे खुद से बेइंतेहा प्यार था,
उसे बेइंतहा नफरत करना सीखा दिया,
जिसे चेहरे पर सिर्फ मुस्कान पसन्द थी
उस चेहरे पर तुमने मातम रहना सीखा दिया,
आवारा सी थी वो, मस्त मलग सी
उसको तुमने जिंदगी से दूर रहना सीखा दिया,
उसने जिम्मेदारी से तुम्ह
े अपना बनाना सीखा था
तुमने उसको भी मन ही मन मरना सीखा दिया,
तड़पती थी वो तुम्हारे प्यार पाने को
तुमने उसको ही यूह मरने के लिये तड़पाना सीखा दिया।।
वो प्यार करती थीं तुमसे
तुमने तो उसे प्यार से ही धोखा खाना सीखा दिया,
क्या इश्क करू अब तुमसे तुमने तो मुझमें मेरा ही मिटा
दिया ।
कैसे सजा दूं उसको जिसको मेने मन्नतों मे मांगा था
उसी ने मुझे इस दुनिया में न रहने का फ़रमान मांगा था।।