क्या क्या नहीं देखा
क्या क्या नहीं देखा
क्या बताएं क्या छुपाएं,
क्या क्या नहीं है जग में देखा,
ज़िंदगी के सुखों और दुखों को,
धूप छांव को कितना देखा।
अपने रिश्तों और नातों को,
हर पल रंग बदलते हमने देखा।
दोस्तों की जिगरी दोस्ती को भी,
नज़रें चुराकर जाते हमने देखा।
जिनके लिए सब कुछ था छोड़ा,
उन्होंने ने ही किया हमको अनदेखा।
ज़ख्म दिए दिल को कितने ही,
रिश्ते की मर्यादा को भी न देखा।
अपने सपनों की दुनिया को,
पल पल उजड़ते हमने देखा।
बेवजह और बेसबब ही,
अपने अरमानों को बिखरते देखा।
मतलब से भरी इस दुनिया में,
निजी स्वार्थ को ऊपर उठते देखा।
झूठ की इस दुनिया में हमने,
सच्चाई को मन ही मन घुटते देखा।