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ANIRUDH PRAKASH

Abstract

4.4  

ANIRUDH PRAKASH

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Ghazal No.1 होना है जब गुनाहों का फैसला ऊपर ही

Ghazal No.1 होना है जब गुनाहों का फैसला ऊपर ही

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तेरी खुशबू-ए-गेसू के आगे रात की रानी क्या है

तेरे रुख़-ए-रौशन के आगे चाँद की चांदनी क्या है


होना है जब गुनाहों का फैसला ऊपर ही 

तो फिर ये सज़ा-ए-ज़िंदगानी क्या है


मौत से पहले की तो सुनी हमने कई दास्ताँ 

पर मौत के बाद की कहानी क्या है


माँ तस्दीक़ है उसके होने की 

ख़ुदा होने की और निशानी क्या है


अश्क़ों से पहले बहता है लहू आँखों से अब

और क्या बताएँ जुनूं-ए-इश्क़ की रवानी क्या है


माँगता रहा उम्र भर दुआ मेरे मरने की 

अब वफ़ात पे मेरे ये रंज-फ़िशानी क्या है


पीता हूँ ख्वाब-ए-जवानी को भुलाने के लिए 

बाद-ए-मयकशी फिर ये आरज़ू-ए-जवानी क्या है


ख़ुश्क आँखों से किया खुद को खुद से जुदा 

फिर तेरे बिछड़ने पे ये आँखों में पानी क्या है


बड़ा गुमाँ था पहले इन आँखों को चार होने पर 

अब इन आँखों में ये पशेमानी क्या है


बे-मा'नी शायरी के सना-ख़्वाँ पूछते हैं हमसे 

तुम्हारी ग़ज़ल का मा'नी क्या है


क़ैद-ए-ज़फा में मुद्दतों रह कर अभी है उम्मीद-ए-वफ़ा 

मेरे दिल पे फिर तेरी ये हुक्मरानी क्या है


बचपन से मिली नसीहत दुनिया से सदाकत की अब 

जो बोलता हूँ सच तो ज़माने को ये बद-गुमानी क्या है


डाल दी आदत परिंदों को कफ़स में वापसी की 

अब जो रखा है खोल के कफ़स तो ये मेहरबानी क्या है


कभी ठहरी ही नहीं खुशियाँ मकाँ-ए-दिल में देर तक

ए ! दिल फिर ये मुसल्सल ग़म-ए-यार की मेज़बानी क्या है


देख के अंजाम दीवानों का फिर भी तू उतरा उसमें 

अब जो डूबता है दरिया-ए-इश्क़ में तो हैरानी क्या है


मिला जो ज़माने से वही लौटाया उसको 

अब तू ही बता 'प्रकाश' इसमें बेईमानी क्या है


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