क्या है ज़िन्दगी
क्या है ज़िन्दगी
गाँवों में देखो,. और शहर में,
जीते हैं कैसे ओ लोग
सोते है झोपड़ी में, बिना खाने की,
जलती है पेट में आग।
बच्चे य़ा बूढे, छोटे य़ा बड़े,
सब है सूखे और रुठे,
किस्मत उनकी, किया घायल,
ज़िन्दगी सच य़ा झूठे।
रोते हैं बच्चे, पूछते हैं खाना,
भूखे हैं वो दो दिन से,
बिचारी माँ, रोकर बोलती,
पापा लायेंगे दुकान से।
ऐसे भी है कुछ, हमारे देश में,
न मिलता है उन्हें खाना,
रहने को नही है, एक झोपड़ी,
ना अच्छा कपड़ा पहना।
हे ईश्वर क्यूँ, बनाई है दुनिया,
क्यूँ है इतना खेल,
क्यूँ लाते हो भयानक बीमारी,
गरीब है आज बेहाल।
पेट को दाना, नहीं मिलता है,
कहाँ से मिलेगी दवा,
हे परमेश्वर तुम, न दो जन्म,
बोलता हूँ सच कड़वा।
जो देश आज, कारोड़पति में,
है सब देश के आगे,
वो ही देश क्यूँ , गरीब के नाम,
लिया धरती की भागे।
बदल जाइये, राजनिती वाले,
ज़रा सुनिये गरीब दुख,
तभी तो होगा, हमारा ये देश,
देने को सबको सुख।
देश की जनता, रहती सुख में,
विकास होगा सबका,
स्वस्थ रहेगा, समाज नीति,
होगा देश महान विश्व का।।
