क्या बना रखा है
क्या बना रखा है
क्या बनाना था, क्या बना रखा है
दुनिया को अज़ाब बना रखा है
ये तुमने कैसा शहर बना रखा है
हर इंसान को ज़हर बना रखा है
हर मायने बदल दिए इंसान होने के
चाँदनी रात को दोपहर बना रखा है
हंगामा तो बहुत हुआ है सदन में सालों से
औरतों की आज़ादी को मुंतजिर बना रखा है
मसख़री की हद देखिए सरे-शाम
हर नाचीज़ को खबर बना रखा है
कहने को तो हर कोई है मेरे घर में
पर बेटी ने घर को घर बना रखा है
सौ बार बहस करने से भी भूख एक बार नहीं मिटती
और सियासत ने रोटी को कुर्सी का दर बना रखा है
*अज़ाब-पापों का वह दण्ड जो यमलोक में मिलता है
*मुंतजिर-प्रतीक्षा करनेवाला
*सरे-शाम-संध्या होते ही
*दर-प्रवेशद्वारसलिल सरोज