कविता- प्रेम रस - दिल मे रहता हूँ |
कविता- प्रेम रस - दिल मे रहता हूँ |
दुनिया के दुखों से तुम्हें कहीं दूर लिए चलता हूँ
आओ प्रिये हर नजर के असर दूर किए चलता हूँ
चाँदनी रात है खुला आसमान ठंडी हवा बह रही
सितारो की महफिल मिल जाओ फिजाँ कह रही
हर तरफ शांती सकुन खुशबू रात रानी महकी है
बना लो सेज नर्म हरी घास जुलफ़े तेरी बहकी है
उतर आया चाँद गोद मेरी दावे से मै कहता हूँ
भूल जाओ गम सारे आओ आज दूरिया मिटा दो
समा लो मुझे जुल्फों के साये गोद सिर लिटा दो
डूब जाऊँ तेरी गहरी झील सी आंखो की गहराई
नजरों से उतर तूने दिल मे मेरी जगह है बनाई
हसीन वादियो तेरी गजल को दिल से पढ़ता हूँ
तेरे बदन की खुशबू को और भी महक जाने दो
सोये हमारे अरमानो को और भी बहक जाने दो
पूनम की चाँद हो तुम लरजते लबो फरियाद हो
हुश्न ए मल्लिका तुम आज हर बंधनो आजाद हो
नहीं कोई दोनों के बीच मै तेरे दिल मे रहता हूँ
एहसास तेरी गर्म साँसो का हो रहा है मुझे बहुत
मदहोसी का आलम अब छा रहा है तुझमे बहुत
पाक मोहब्बत हमारी जज़बातो को संभाले रखना
हो जाये गुनाह कोई दोनों खुद को संभाले रहना
मोहब्बत और मोहब्बत सिर्फ मै तुमसे करता हूँ।