कविता- कौन जानता था |
कविता- कौन जानता था |
कर्मवीर होंगे बेचैन अपने घर कौन जानता था
राह निहारेंगे कब ताला खुलेगा कौन जानता था |
आयेगा ऐसा भी एकदिन देखेगी दुनिया दुर्दिन
इंसान खुली हवा को तरसेगा कौन जानता था |
बाग बगीचा माल बाजार सिनेमा सब सूने पड़े
कोई किसी से नहीं मिलेगा कौन जानता था |
मिलना गले तो दूर हाथ भी मिला सकते नहीं
महफ़िलों खूब सन्नाटा पसरेगा कौन जानता था |
नुक्कड़ पर चाय की चुस्की पंचायत नहीं लगेगी
बारात बाजा बैंड अब न बजेगा कौन जानता था |
जो जहां वहीं पड़ा है कब मिलेंगे सवाल खड़ा है
ट्रेन प्लेन मोटर अब ना चलेगा कौन जानता था |
मामी मौसा मौसी नाना नानी फोन पर मिलते
हर रिश्ता मोबाइल पर मिलेगा कौन जानता था |
ईस जाने कब लॉक डाउन हटेगा बाजार खुलेगा
बिछड़े अब मिलेंगे कोरोना मरेगा कौन जानता था |