" कविता और सरिता "
" कविता और सरिता "
कविता निर्झर सरिता है
वह मदमस्त आवध गति से
ऊँचे पर्वतों की श्रृंखला से निज
राहों को ढूंढ लेती है !
पता तो उसे भी नहीं लगता है
धाराएँ उसकी क्षणभर
द्रिग्भ्रमित हो जाती हैं फिर भी
मंजिल को वह पा लेती है !
कविता भी अपनी गतिओं की
मर्यादा को अक्षुण रखती है !
अपनी गतिओं में किलकारियां
भरती उछल कूद गुनगुनाती
प्रेम राग सुनाती आगे बढती है !
टेढ़े मेढ़े राहों का अनुमान ना था
कुछ सोचा था कि राह बड़े आसन मिलेंगे
गति में शिथिलता आएगी
पर नए भाव भंगिमा भी मिलती जायेंगी !
सरिता का लक्ष्य सागर में मिलके
सम्पूर्णता का आभास उसे मिलता है
कविता की पूर्णता में भी
मन अह्ल्यादित होकर झूम उठता है !