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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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कवि परिचय

कवि परिचय

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कवि हूँ

क्योंकि कविता करता हूँ

कल्पलोक में रहता हूँ

सांसारिक बंधनो से मुक्त

सिद्ध पुरुष की तरह

मस्त रहता हूँ

अपनी दुनिया मे

गाते पंक्षी की तरह

लहराती लता की तरह

बहते झरने की तरह

गुनगुनाता भी हूँ भँवरे सा

फूल को देखकर

लेकिन उसमें खुशबू नहीं

अतः

उड़ जाता हूँ तलाश में

सुबह दोपहर में बदलती है

संध्या आती है

सितारों जड़ा आँचल लहराकर

उसके चिलमन से

देखता हूँ चाँद मे

अपनी प्रेयसी को

तभी भिखारी ने दस्तक दिया

रोटी के लिए

भूख का एहसास हुआ

शब्द सुनकर

चाँद की गोलाई में खोजने लगा

रोटी को

भूख मिटाने के लिए

लेकिन चाँद का दोष क्या

कोई उसमे देखे अगर

प्रेयसि को

रोटी को

घाटी या पहाड़ को

अतः

कल्पना का शीशमहल

टूट गया

सच्चाई से टकराकर

फिर भी

कवि बना रहूँगा

एक लोभ बस

कल्पना में तो खुश हूँ

सबको यह भी नसीब नहीं

यही क्या कम है ।



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