कवि नही हूँ
कवि नही हूँ


प्राप्त किए अपने अनुभवों को
मन:दर्पण में उतार लेता हूँ
दिल में आए हर ख्याल को
पंक्तियों का रूप दे देता हूँ।।
कवि नहीं हूँ जाने कैसे
कुछ तो मैं लिख लेता हूँ
शब्दों का कर हेर फेर कुछ
कविता का रूप दे देता हूँ।।
विचारों से जब भाव हैं मिलते
उन्हे अर्थों में ढाल लेता हूँ
मिल सके कुछ सीख उनसे
ऐसा कुछ लिख देता हूँ।।
चाँद छूने की हसरत नहीं है
थोड़े से काम लेता हूँ
वक़्त की माँग भी जैसी होती उसमे
खुद को ढाल लेता हूँ।।
हर किसी का अपना व्यक्तिव
किसी की जिंदगी मे, दखल कभी ना देता हूँ
अपनी धुन में मौज मनाता
ज़िंदादिली से जिंदगी जीता हूँ।।
गलती हो तो क्षमा मांगता
अनुभवों को अपने, बाँट सभी से लेता हूँ
आओ मिलकर आनंद ले उसका
जो कभी कभार लिख लेता हूँ।।