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Kunda Shamkuwar

Abstract

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Kunda Shamkuwar

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कवि और किताबें

कवि और किताबें

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कल किसी ने कवी से यूँ ही पूछा

'आजकल क्या चल रहा है कविवर?

कोई नयी कहानी लिख रहे है क्या?


फ़रमाइश करते हुए कहने लगे,

'इस बार कोई तड़कती भड़कती कहानी लिख दो....

आजकल आप सीरियस मुद्दों पर लिखने लगे हो.....

उन्हें पढ़कर दिमाग का दही हो जाता है......


मैंने हँसते हुए कहा,

"आजकल तुम देख ही रहे हो की पाठकों की रुचि बदल रही है...

लोग मोबाइल में खोये रहने लगे है...

लोगों को लगने लगा है कि मोबाइल से उन्होंने दुनिया मुठ्ठी में कर ली है.."


हक़ीक़त में क्या ऐसा है?

क़ीक़क़तन मोबाइल ने हमें काबू में कर लिया है...

मोबाइल ने जैसे हमे ही क़ैद कर लिया है...

अपनी आदत लगाकर..." 

मोबाइल के बिना क्या एक पल भी गुज़ार सकते है भला?

किताबें यह कड़वी सच्चाई जान चुकी है.....

और उन्होंने अब खामोशी अख्तियार कर ली है.....

धूलभरी शेल्फ से एक उम्मीद से वह झाँकती रहती है.....

पढ़ते पढ़ते कोई उसमे गुलाब ही रख जाएं......

उम्र के किसी मोड़ पर किताब के पन्नों में वह सूखा गुलाब फिर मिले...

वह सूखा गुलाब उस वक़्त भी उन भीनी यादों से महक उठेगा...

और किताब पढ़नेवाले की तरह किताबें भी मुस्कुरा उठेगी!



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