कुसूर अपना था
कुसूर अपना था
सच तो ये है कि कुसूर अपना था,
चाँद को छूने कि तमन्ना की।
आसमां को जमीन पर माँगा,
फूल चाहा कि पत्थोरों पे खिलें।
कांटों में खिले फूलों की तलाश,
आरजू थी आग ठंडक देगी,
और बर्फ में ढूँढ़ते रहें उम्मीद,
ख्वा़ब जो देखा चाहा, सच हो जायें।
इसकी हमें सजा मिलनी थी
सच तो ये है कुसूर अपना था।
