ए-दास्ताँ जिंदगी
ए-दास्ताँ जिंदगी
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अजीब दास्तांँ है जिंदगी ये ठहरती नहीं
जीनेवाले जीना कभी यूंँही छोड़ते नहीं।
जीवन का हिसाब रखने वाले रखते हैं
और हम है की जीना कभी सिखते नहीं।
दांव लगाया उन्होंने हरपल जिंदगी का
हमनें कहा, हुजूर यूंँही इश्क होता नहीं।
हर मोड़ पे कांटे बिखर गए तो क्या हुआ
हम भी कस्मे-वादें देकर यूंँही मुकरते नहीं ।
दर्द-ए-दिल रखते है हम हमसफ़र हम भी
कहते है ये आपकी अर्ज-ए-दिल्लगी नहीं।
जला है जिस्म और ये दिल भी जला होगा
साहिब-ए-हुजूर ये आलम भी समझते नहीं।
जब आँख से ना टपके तो मोहब्बत क्या है
खरीददारों से ये इश्क मुक्मल संभलते नहीं।
