तेरी आस
तेरी आस
आँखें शर्म सी झुकी हुई है
लफ्ज़ शर्म से सिले हुये हैं।
आहट हल्की सी होती हैं,
जब तुम कोई हरकत करते हो।
ये आसमाँ और ये बादल में
तेरी महक समाई हुई है।
कैसे छूलूं मैं इन हवाओँ को
कैसे सुकून मिले जो तुम फिजा़ में हो।
आँखें शर्म सी झुकी हुई है
लफ्ज़ शर्म से सिले हुये हैं।
आहट हल्की सी होती हैं,
जब तुम कोई हरकत करते हो।
ये आसमाँ और ये बादल में
तेरी महक समाई हुई है।
कैसे छूलूं मैं इन हवाओँ को
कैसे सुकून मिले जो तुम फिजा़ में हो।