STORYMIRROR

Dishita Sharma

Drama Tragedy Thriller

4  

Dishita Sharma

Drama Tragedy Thriller

कुदरत की जंग

कुदरत की जंग

1 min
271

कुदरत के सब्र को आज़माया था,

आज कब्र तक जाने के काबिल न रहे,

धरती मां को सताया था,

आज अफसोस तक जताने के काबिल ना रहे।


सृष्टि ने यह कैसी जंग है रची,

शव तक दफनाने की जगह न है बची,

कैसा मौत का मौसम है ये,

सबके दिलों में बस खौफ बाकी है रे।


राजा हो या रंक,

हर कोई बेहाल है,

ऐसा तो सदियों में हुआ पहली ही बार है।


आज ताबूतों तक की पड़ गई है कमी,

आंखों में रह गई बस है नमी।

कुदरत ने खुद को निखारा है,

आज प्रकृति के सामने पूरा विश्व हारा है।


अब भी मनुष्य का वही हाल है,

सबको बस जाति और समुदाय का ही ख्याल है,

खुद खुदा भी परेशान है,

आखिर इंसान ने खो दिया ईमान है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama