कुछ तुम कहो
कुछ तुम कहो
कह रहा हूँ मैं सनम
जां जिगर की बात कब से,
कहाँ आसां कुछ कहना
इन बातों से मन को गढना,
चुप रहना सरल नहीं
बहुत कही सब सही सही
पर तुुुुुुम्हारी अब बारी है
यूँ चुप न रहो
कुछ तुम कहो,कुछ तुम कहो।
गर बात न होती
तुम्हारी तरफ से
फर्क हम करते,चुप ही रहते
सहजता से नए नए
ख्वाब हम बुनते,
तुमने बुना यह ताना बाना
उलझ रह गया मैं परवाना,
मौन हो मग्न न रहो
कुछ तुम कहो, कुछ तुम कहो।
हर शै मेें अजीज तुमको माना
तुमसे नाता लगा बङा पुराना,
समझ लो यह तुुम भी दिल से
एकाकार होंगेें साथ मिल के,
मैंने तुम्हे सदा अपना जाना है
चुप रह कर क्या पाना है,
ऐसे अब चुप न रहो
कुछ तुम कहो, कुछ तुम कहो।

