कुछ तो है
कुछ तो है
क्यूँ प्राकृति उदास है, क्यूँ मुश्किल समां है कुछ तो है
मूक पशु - पक्षी भी लगे हैं बोलने कुछ तो है
क्यूँ बाजारों में भी लोग नज़र नहीं आते कुछ तो है
सूना-सूना सा आसमान क्यूँ हूँ कुछ तो है
चुप सा भयभीत सा लगता हर इन्सान है कुछ तो है
हर गली हर कूचां हर सड़क सुनसान है कुछ तो है
गली के कुत्ते बेचारी गाय भूखे सड़को पर घूम रहे कुछ तो है
कोई गाड़ी , रिक्शा सड़क पर नज़र नहीं आ रहे कुछ तो है
पक्षी सब आज़ाद घूम रहे फूल भी बागों में अकेले डोल रहे कुछ तो है
सोचते हैं क्या खुशबू खत्म हो गई हमारी क्यूँ इन्सां नहीं छोड़ रहे कुछ तो है
धान कर रहा इन्तज़ार खेतों में कब कटेगा कुछ तो है
कब पहुंचेगा घरों में किसान नज़र नहीं आ रहे कुछ तो है
ना मालूम ये कैसी आपदा आई ये देख के आँख मेरी हर आई
करनी इन्सान की प्रकृति ने भी चुकाई
हे ईश्वर इंसाफ कर हम सब की गलतियाँ माफ़ कर
इस कंसर्ट से दुनिया को आज़ाद कर ।