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Archana kochar Sugandha

Abstract

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Archana kochar Sugandha

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कुछ रुठे-रुठे से भगवान है

कुछ रुठे-रुठे से भगवान है

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कुछ रुठे-रुठे से भगवान है 

बंद सारे इनके दरबान है।


खतरों के मंडराते बादलों में 

धरा पर केवल इंसान ही इंसान हैं।


बिन मौसम झूम-झूम कर बदरा बरसे 

बड़ा ही कठिन इम्तिहान है। 


तेरे रहमों करम की गुज़ारिश में 

हर शख्स बड़ा ही परेशान है। 


एक घड़ी की फुरसत पा कर तू भी देख लेता

जिंदगी की शांत लहरों में कितना भयंकर तूफान है। 


झाँक लेता उनके भीतर के दुःख दर्द को 

जिनकी संरचना पर तुम्हें इतना गुमान हैं। 


तकलीफ में तू भी अश्रुओं से भिगोता

होगा पूरी कायनात को

इसलिए किए बंद तूने अपने सारे दरबान हैं। 


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