STORYMIRROR

S.Dayal Singh

Abstract

4  

S.Dayal Singh

Abstract

मैं कुछ कहूँ-1

मैं कुछ कहूँ-1

1 min
326

(1)

 "मैं"

तुझको मेरी

"मैं" भा गई 

पर

मुझको मेरी

"मैं" खा गई।

(2) 

"रंग" 

रिश्तों ने अपना लिये,

गिरगिट वाले रंग।

आज पराये हो गये,

कल तक थे जो संग।

(3) 

"धारा"

धारा जब तक धारा थी,

धारा थी बहता पानी। 

कृष्ण सागर में मिलते ही,

हो गयी राधा रानी।

(4)

 "सुखी-दुखी"

जब

ये सुखी था,

तो

वो दुखी था।

अब

वो सुखी है,

तो

ये दुखी है।

(5) 

"आईना"

जब जब भी मैं 

आईने के सामने 

जाता रहा।

मैं ही नहीं माना 

आईना तो 

सच्च दिखाता रहा।।

(6) 

"खाना"

जब कुछ भी नहीं कमाता था

पेट भर कर खाना खाता था।

अब दिन रात खूब कमाता हूँ 

खाना बचा-खुचा ही खाता हूँ।।

(7) 

"कुछ भी नहीं"

जब कुछ भी नहीं था

तब सब कुछ था।

अब सब कुछ है

पर कुछ भी नहीं है।।

(8) 

"सुनता नहीं"

कुछ कहता हूँ 

कोई सुनता नहीं। 

कोई कहता है

कुछ सुनता नहीं।। 

--एस.दयाल.सिंह--



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract